Monday 17 December 2012



 राष्ट्रीय पाण्डुलिपि मिशन के द्वारा संचालित तत्वबोध श्रृंखला के अंतर्गत आयोजित रामचरित मानस की सचित्र पांडुलिपियाँ विषयक  व्याख्यान 
प्रवक्ता : श्री उदयशंकर दुबे जी 
स्थान: श्री गोदा मंडपम, मंदिर श्री धाम गोदा विहार , वृन्दावन 

स्वागत भाषण देते संस्थान के सचिव श्री लक्ष्मीनारायण  तिवारी 

व्याख्यान प्रस्तुत करते हुए श्री उदय शंकर दुबे जी 

कार्यक्रम में उपस्थित श्रोतागण 

कार्यक्रम में उपस्थित श्रोतागण 






मुख्या अतिथि श्री सिद्ध नाथ झा जी 

संगृहीत पांडुलिपियों एवं दस्तावेजों का अवलोकन करते अतिथिगन 

Sunday 21 October 2012

Photos of the lecture Bundelkhand ke braj parak abhilekh aur pandulipiyan

मुख्य अतिथि श्री हरिविष्णु अवस्थी को सम्मानित करते हुए कार्यक्रम के अध्यक्ष श्री रूद्र किशोर पाण्डेय जी  
श्री हरिविष्णु अवस्थी जी व्याख्यान पास्तुत करते हुए 


धन्यवाद ज्ञापन देते हुए संसथान के सचिव श्री लक्ष्मीनारायण  तिवारी 


Wednesday 26 September 2012

Lecture on Bundelkhand ke braj parak Abhilekh aur Pandulipiyan by Pandit Harivishnu Awasthi ji, 24.09,2012

पाँच  सौ वर्ष से पुराने हैं ब्रज बुन्देलखण्ड  के सम्बन्ध : पंडित हरिविष्णु अवस्थी 

ब्रज संस्कृति शोध संस्थान , वृन्दावन में पोथी निधि श्रृंखला के अंतर्गत अभिलेखीय सामग्री पर केन्द्रित व्याख्यान 24 सितम्बर 2012, सोमवार को मध्याह्नोत्तर 3 बजे किया गया । कार्यक्रम में श्री वीरेन्द्र  केशव साहित्य परिषद , टीकमगढ़,मध्य प्रदेश  के अध्यक्ष पण्डित हरिविष्णु अवस्थी जी  ने बुन्देलखण्ड के  ब्रज परक अभिलेख और पाण्डुलिपियाँ  विषयक व्याख्यान प्रस्तुत किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता राजकीय संग्रहालय , मथुरा के वरिष्ठ पुरातत्वविद श्री  रुद्रकिशोर  पाण्डेय ने की।
व्याख्यान प्रस्तुत करते हुए पंडित हरिविष्णु अवस्थी जी ने कहा की आज से पांच सौ वर्ष पूर्व हरिराम व्यास एवं बुंदेला रजा मधुकर शाह द्वारा ब्रज और बुंदेलखंड के मध्य  सांस्कृतिक संबंधों की नीँव राखी गयी कालांतर में वे और अधिक  होते गए जिसके प्रभाव स्वरुप दतिया स्टेट को जहां म . प्र का वृन्दावन कहा जाने लगा वहीँ वृन्दावन का एक मोहल्ला ही बागबुन्देला के नाम से लोकप्रिय हुआ। श्री अवस्थी जी ने बुन्देलखण्ड में बिखरे पडे ब्रज सम्बन्धी दस्तावेज़ , शिलालेख एवं  ऐतिहासिक  पाण्डुलिपियों का विवरण देते हुए कहा की ब्रज में  बुन्देलखण्ड  की रियासतों के मंदिर एवं प्राचीन कुञ्ज दोनों संस्कृतियों के मध्य परस्पर सांस्कृतिक सम्बन्धों का बोध कराने  वाले  हैं ।  
अध्यक्षीय उद्बोधन में डॉ रुद्रकिशोरे पाण्डेय ने कहा कि दस्तावेज़, शिलालेख एवं अभिलेखों का अध्ययन इतिहास लेखन का वस्तुनिष्ठ स्रोत है। लेकिन दुर्भाग्यवश ब्रज के इतिहास लेखन में यह महत्वपूर्ण पक्ष अब तक उपेक्षित ही रहा है। उन्होंने कहा कि ब्रज संस्कृति शोध संसथान द्वारा ब्रज के बहा बिखरे पडे ब्रज सम्बन्धी ऐतिहासिक दस्तावेजों एवं पाण्डुलिपियों पर केन्द्रित यह व्याख्यान  ब्रज के इतिहास को एक नयी दिशा प्रदान करेगा। 
इससे पूर्व कार्यक्रम का शुभारम्भ श्री गणेश जी के चित्रपट पर माल्यार्पण से हुआ। सञ्चालन संसथान के सचिव श्री लक्ष्मीनारायण तिवारी एवं धन्यवाद ज्ञापन डॉ जयेश खण्डेलवाल द्वारा किया गया। इस अवसर पर जगदीश शर्मा गुरु परमानन्द गुप्त, सुरेश शर्मा, तोताराम उपाध्याय, विष्णुमोहन नागार्च, विजयवाल्लभ गोस्वामी, शरदजी, प्रेमदत्त मैथिल, मदनमोहन गोस्वामी, स्वामी नवलमधुरि शरण, कुमुद घोष , देवकीनन्दन गोस्वामी, मधुमंगल शुक्ला सहित अनेक लोग उपस्थित थे। 






Sunday 12 August 2012

Dr. Imre Banghas visit to the Institute

संसथान की पाण्डुलिपि का अवलोकन करते हुए डॉ इम्रे बंघा एवं वरिष्ठ पान्दुलिपिविद श्री उदय शंकर दुबे जी 


Tuesday 7 August 2012

Lecture on "Kavi Anandghan ke kavitton ki pandulipiyan" By Dr Imre Bangha at the Institute under the Pothi Nidhi Lecture series held on 31 July 2012




संस्थान में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के वरिष्ठ प्रोफेसर डॉ . इम्रे बंघा का स्वागत करते हुए डॉ. जयेष खंडेलवाल 




 कवि आनंदघन के कवित्तों की पांडुलिपियाँ पर य्याख्यान देते हुए ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के वरिष्ठ प्रोफेसर डॉ . इम्रे बंघा 


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Friday 25 May 2012

PHOTOGRAPHIC DOCUMENTATION OF HISTROICAL MONUMENTS AND TEMPLES BY BRAJ SANSKRITI SHODH SANSTHAN

व्यास घेरा , वृन्दावन  स्थित  श्री हरिराम  व्यास  के                               ठाकुर  श्री युगलकिशोर जी का पुराना मंदिर 




Wednesday 9 May 2012

Dharohar: Lecture Series on Braj Archaeology 7.05.2012

व्याख्यान  देते हुए युवा इतिहास्स्कार श्री बलराम 
व 



Monday 26 March 2012


ब्रज  क्षेत्र में रचा गया रसोपसना साहित्य अद्वितीय है| इसके संपादन, प्रकाशन, एवं अनुसन्धान में आज लोगों की रूचि दिखाई नहीं देती। डॉ. हितजस अलिशरण ने रस्भक्ति धारा के वाणी साहित्य की सतत सेवा कर शोधार्थियों एवं जिज्ञासु साधको के लिए अध्ययन का  एक नवमार्ग प्रशस्त किया है। साहित्य के प्रति उनका समर्पण तथा इस समर्पण के प्रति यथोचित सम्मान के लिए हितजस अलिशरण तथा ब्रज  संस्कृति शोध संस्थान धन्यवाद् के पत्र हैं। यह विचार राधा वल्लभ सम्प्रदायाचार्य गोस्वामी श्री हितराधेश लाल जी महाराज ने ब्रज संस्कृति शोध संस्थान द्वारा पोथी निधि श्रंखला के अंतर्गत आयोजित ब्रज निधि सम्मान समारोह के अवसर पर व्यक्त किये।
हिंदी भक्ति काव्य में रस भक्ति धरा का योगदान विषयक संघोष्टी के दौरान मुख्य अतिथि पद से महाराजश्री ने कहा आज युवाओं को वाणी ग्रंथीं में निहित ज्ञान को समझना चाहिए जिससे वे अपनी संस्कृती  की व्यापकता  को समझ सकें।
कार्यक्रम के अंतर्गत संयाजक आचार्य विष्णु मोहन नागार्च  ने उपस्थित जनों का माल्यार्पण कर एवं उत्तरी उढ़ाकर अभिनन्दन किया। कार्यक्रम के अंतर्गत गोस्वामी हित राधेश्लाल जी महाराज द्वारा वाणी सेवी हितजस अलिशरण को ग्यारह हजार रुपये का चेक एवं प्रशस्ति पत्र प्रदान कर सम्मानित किया गया।

Tuesday 7 February 2012

Pothi Nidhi 6-2-2012


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pothi nidhi


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