Wednesday 1 March 2017

प्राचीन मथुरा की खोज -1

प्राचीन मथुरा की खोज -1
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मथुरा,श्रीकृष्ण का जन्म स्थान।भारत के महान प्राचीन नगरों में से एक।सप्त मोक्षदायनी पूरियों में से एक । इस नगर के वैभव का वर्णन केवल हिन्दू ग्रंथों में ही नहीं वरन् बौद्ध एवं जैन साहित्य में भी मिलता है। पत्थर की मूर्तियों के निर्माण की विश्व प्रसिद्ध ' मथुरा शैली ' यहीं की देन है।आज विश्व का शायद ही कोई प्रसिद्ध संग्रहालय हो,जहाँ मथुरा शैली की मूर्तियां सुशोभित न हों ।
मथुरा प्राचीन भारत के महत्वपूर्ण व्यापारिक राजमार्ग पर स्थित था।तब मध्य एशिया से सुदूर दक्षिण में समुद्र तट तक जाने वाला मार्ग यहाँ से होकर गुजरता था।प्राचीन भारत के 'शूरसैन' जनपद की राजधानी 'मथुरा ' क्षेत्रफल की दृष्टि से एक विशाल नगर रहा होगा। क्यों कि प्राचीन भारत में आये यूनानी,चीनी,अरबी यात्रियों ने अपने यात्रा वृत्तों में इस नगर का आँखों देखा वैभव दर्ज किया है। किन्तु जब हम मध्यकालीन मथुरा के नगर विस्तार को देखते हैं तो वह यमुना के किनारे -किनारे फैला अत्यंत छोटा एक हिन्दू तीर्थ नगर के रूप में दिखाई देता है जिस का प्रवेश द्वार ' होली गेट 'था जिसे ब्रिटिश साम्राज्य में बनाया गया था। हम देख सकते हैं कि मध्यकाल से लेकर भारत की स्वतंत्रता से पूर्व तक मथुरा एक छोटा नगर ही था। वह निश्चित रूप से वह मथुरा नगर नहीं था जिसका वर्णन यूनानी,चीनीऔर अरबी यात्रियों ने किया है। यदि हम मध्यकालीन मथुरा नगर को देखें तो वह छोटे बड़े अनेक टीलों पर वसा है।नगर के अन्दर और बाहर के क्षेत्रों में भी कई टीले स्थित हैं जिनमें से कई के नाम तो पौराणिक पात्रों के नामों पर हैं।जैसे नारद टीला,ध्रुव टीला,सप्तॠषि टीला ,नाग टीला ,अम्बरीष टीला,गणेश टीला आदि।नगर के पास ही कंकाली टीला, कटरा,महाविद्या ,सौंख,महोली आदि के टीले भी हैं। वास्तव में यह साधारण मिट्टी के टीले भर नहीं हैं। यह उस महान नगर के ध्वंसावशेष हैं जो एक विस्तृत क्षेत्र फल में फैला हुआ था और उस प्राचीन मथुरा नगर की वैभवशाली पुरातात्त्विक सम्पदा के खजाने हैं जिसे हज़ारों वर्ष पहले यूनानी,चीनी तथा अरबी यात्रियों ने अपनी आँखों से देखा था।
(शेष अगली किस्तों में )

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