Tuesday 21 March 2017

प्राचीन मथुरा की खोज -3

प्राचीन मथुरा की खोज -3
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पुरातात्त्विक साक्ष्यों के प्रकाश में हम प्राचीन मथुरा के नगर विस्तार पर कुछ चर्चा कर सकते हैं।मथुरा ने नगर का रूप कब ग्रहण किया।इस प्रश्न के उत्तर में हमारे पास लगभग छठी शताब्दी ईसा पूर्व तक के पुरातात्त्विक साक्ष्य उपलब्ध हैं,इस से यह सिद्ध नहीं होता है कि मथुरा का अस्तित्व छठी शताब्दी ईसा पूर्व से पहले नहीं था। यदि हम पौराणिक संदर्भों में मथुरा को खोजते हैं तो इस नगर का सर्वप्रथम उल्लेख बाल्मीकी रामयण के उत्तर कांड में प्राप्त होता है। 'मधु' नामक दैत्य के नाम पर नगर का नाम मधुपुर या 'मधुपुरी' कहलाया।इस के आसपास का घना जंगल 'मधुवन' कहलाने लगा।मधु और उसके पुत्र लवण की कथा का वर्णन रामायण के अलावा अन्य पुराणों में भी मिलता है।श्रीराम के छोटे भाई शत्रुघ्न ने लवण का वध कर मथुरा पर अपना राज्य स्थापित किया।
रामायण में मथुरा को देवताओं के द्वारा निर्मित पुरी कहा गया है -
'इयं मधुपुरी रम्या मधुरा देव निर्माता ' आज इस मधुवन का अस्तित्व मथुरा के निकट 'महोली' नामक गांव के रूप में बचा है।ब्रज के प्रमुख वनों में मधुवन का नाम आता है। प्रति वर्ष वैष्णव भक्तों द्वारा किये जाने वाली ब्रज चौरासी कोस की परिक्रमा में एक पड़ाव महोली 'मधुवन'में होता है,जहाँ के दर्शन कर तीर्थ यात्री अपने आप को धन्य मानते हैं। महोली गांव से पुरातात्त्विक सामग्री भी उपलब्ध हुई है जिससे इस स्थान की प्राचीनता प्रमाणित होती है।
हमारे लिए यह समझना भी काफ़ी दिलचस्प होगा कि महोली का महत्व मध्यकाल तक बना रहा।अकबर के समय में मथुरा और महोली आगरा सरकार के अंतर्गत दो स्वतंत्र परगने थे।आइन ए अकबरी से ज्ञात होता है कि मथुरा के मुकाबले महोली परगने में भूमि अधिक थी और राजस्व भी अधिक प्राप्त होता था।

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